среда, 19 августа 2020 г.

अलिकसान्दर पूश्किन की तीन कविताएँ

 अलिकसान्दर पूश्किन की तीन कविताएँ


1.  प्रेमपत्र को विदाई


विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
 
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न छोड़ी राह
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
 
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल
है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल
भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर
मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
 
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआ
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
लाख पिघल रही थी ऐसे मानो हो वह रूठी-सी
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले
पीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मन
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।


2. गायक


येकातिरिना बाकूनिना के लिए

सुनी क्या तुमने जंगल से आती आवाज़ वो प्यारी
गीत प्रेम के, गीत रंज के, गाता है वह न्यारे
सुबह - सवेरे शान्त पड़े जब खेत और जंगल सारे
पड़ी सुनाई आवाज़ दुखभरी कान में हमारे
यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने ?
 
मिले कभी क्या घुप्प अंधेरे जंगल में तुम उससे
गाए सदा जो बड़े रंज से अपने प्रेम के किस्से
बहे कभी क्या आँसू तुम्हारे मुस्कान कभी देखी क्या
भरी हुई हो जो वियोग में ऎसी दृष्टि लेखी क्या
मिले कभी क्या तुम उससे ?

साँस भरी क्या दुख से कभी आँखों की वीरानी देख
गीत वो गाए बड़े रंज से दे अपने दुख के संदेश
घूम रहा इस किशोर वय में जंगल में प्रेमी उदास
बुझी हुई आँखों में उसकी अब ख़त्म हो चुकी आस
साँस भरी दुख से क्या कभी तुमने ?


3. सब ख़त्म हो गया


ओदेस्साई कन्या अमालिया रीज़निच के लिए

सब ख़त्म हो गया अब हममें कोई सम्बन्ध नहीं है
हम दोनों के बीच प्रेम का अब कोई बन्ध नहीं है
अन्तिम बार तुझे बाहों में लेकर मैंने गाए गीत
तेरी बातें सुनकर लगा ऎसा, ज्यों सुना उदास संगीत ।
 
अब ख़ुद को न दूँगा धोखा, यह तय कर लिया मैंने
डूब वियोग में न करूँगा पीछे तय कर लिया मैंने
गुज़र गया जो भूल जाऊँगा, तय कर लिया है मैंने
पर तुझे न भूल पाऊँगा, यह तय किया समय ने
 
शायद प्रेम अभी मेरा चुका नहीं है, ख़त्म नहीं हुआ है
सुन्दर है, आत्मीय है तू, प्रिया मेरी अभी बहुत युवा है
अभी इस जीवन में तुझ से न जाने कितने प्रेम करेंगे
जाने कितने अभी मर मिटेंगे और तुझे देख आहें भरेंगे ।


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय



вторник, 2 апреля 2019 г.

येव्गेनी येव्तुशेंको की कविता -- रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?

येव्गेनी येव्तुशेंको की कविता -- रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?

रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?
तुम पूछो ज़रा उस मौन से, भैया
खेतों और मैदानों पर फैला है जो
भोज के पेड़ और चिनार से पूछो
पूछो उन सैनिकों से ज़रा फिर
भोज वृक्षों के नीचे लेटे हैं जो
सपने उनके आपको बताएँगे भैया
रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?

उस युद्ध में जान दी सैनिकों ने
नहीं सिर्फ़ देश के लिए अपने
बल्कि इसलिए कि सारी दुनिया के लोग
शान्ति से देख सकें सपने
पत्तों और पोस्टरों की सरसराहट के नीचे
तुम सो रहे हो न्यूयार्क, सो रहे हो पेरिस
तुम्हारे सपने ही तुम्हें यह बता देंगे, भैया
रूसी लोग युद्ध चाहते हैं क्या?

हाँ लड़ना हम अच्छी तरह जानते हैं
लेकिन हम नहीं चाहते फिर से लड़ना
नहीं चाहते कि इस उदास धरती पर
फिर से सैनिको को पड़े गिरना और मरना
आप सब माओं से पूछिए ज़रा
मेरी घरवाली से ही पूछ लीजिए ज़रा
फिर समझेंगे आप यह बात, मेरे भैया
रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या ?

मूल रूसी से अनुवाद -- अनिल जनविजय

कविता के प्रति प्रतिबद्ध कवि

कविता के प्रति प्रतिबद्ध कवि


रूसी कविता के रजत-काल यानी बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध की रूसी कविता ओसिप एमिल्येविच मन्दिलश्ताम (1891-1938) के उल्लेख के बिना अधूरी मानी जाती है। कवि मन्दिलश्ताम का ज़िक्र रूस में आन्ना अख़मातवा, बरीस पसतिरनाक और मरीना स्विताएवा जैसे कवियों की अत्यन्त लोकप्रिय प्रसिद्ध त्रयी के साथ होता है। इन चारों कवियों ने रूसी साहित्य को समृद्ध किया। लेकिन मन्दिलश्ताम के कविता कहने का ढंग अनूठा है। वे तत्कालीन रूसी समाज की विद्रूपताओं को, उनकी घुटन में जी रहे व्यक्ति के दर्द को, उसके कड़वे कसैलेपन को और उसके संघर्ष को अपनी कविता में पिरोकर हमारे सामने रखते हैं। हालाँकि उनकी कविताओं में छलकता दर्द ख़ुद उनकी ज़िन्दगी में पैबस्त पीड़ा का ही अक्स है लेकिन उसके मूल में मनुष्य की अस्मिता की चिन्ता ही कुलबुलाती है।

मन्दिलश्ताम की कविताएँ जीवन व अपने समय के प्रति सचेत और सम्वेदनाओं से लबरेज़ हैं। प्रेम का आवेग उनमें झलकता है। उनमें घृणा की अभिव्यक्ति भी है। ओसिप दुराव-छिपाव के कवि नहीं हैं। उनका आग्रह पाखण्ड के विरुद्ध है और अपनी कविताओं में वे पाखण्ड को उजागर करने से चूकते नहीं। इसके लिए वे यूनानी मिथकों और ईसाई पौराणिक प्रतीकों का भरपूर उपयोग करते हैं। उन्होंने अपनी सारी चेतना का सार अपनी कविता में डाल दिया है और फिर जैसे कविता ने पुनः उनकी व्यावहारिक चेतना का निर्माण किया है। उनका जीवन ही जैसे हम कविता के रूप में पढ़ते हैं।

मन्दिलश्ताम की काव्य-दुनिया द्वन्द्वात्मक सम्बन्धों का प्रतिफल है जिसमें जीवन-स्थितियों के प्रति आक्रोश है और प्रकृति के प्रति अटूट राग। मनुष्य में गहरी आस्था है, किन्तु शासक के प्रति घृणा। जीवन से गहरा लगाव है लेकिन जीवन-सत्य मृत्युबोध से आतंकित। इसीलिए मिथक और धार्मिक सन्दर्भ ही मन्दिलश्ताम की सम्वेदनाओं को संचालित करते हैं। जटिल प्रतीकों और अबूझ-अनगढ़ बिम्बों का उपयोग वस्तुतः उनके कठिन जीवन को ही प्रतिबिम्बित करता है। उनकी कविता का सच ही उनके जीवन व उनके समय तथा उस समय के रूसी समाज का सच है।

मन्दिलश्ताम कविता के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध थे। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में कविता का दामन नहीं छोड़ा। उनके लिए कविता ही जीवन रही और जीवन ही कविता। अपनी कविता के कारण उन्हें बार-बार राज्य-सत्ता से मुठभेड़ करनी पड़ी। सत्ता ने उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया। कई बार उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उन्हें कालेपानी की सज़ा दी गई। अपनी कविताओं के कारण ही उन्हें यातना-शिविर में झोंक दिया गया और अन्ततः वहीं उनकी अकाल-मृत्यु हो गई।

रूसी भाषा में मन्दिलश्ताम की कविताएँ बेहद दुरूह हैं। उनकी भाषा बेहद जटिल और पेचीदा। यूनानी, रोमन व ईसाई मिथकों का मन्दिलश्ताम ने कविता में इतना घना प्रयोग किया है कि स्वयं रूसी पाठक के लिए उनकी कविता को समझ पाना सहज नहीं रह गया है। वैसे ही जैसे हिन्दी में महाकवि मुक्तिबोध की कविताएँ हिन्दी के किसी आम पाठक को कठिन लगती हैं।

ऐसी कविताओं को हिन्दी में प्रस्तुत करने का बीड़ा सिर्फ़ वही व्यक्ति उठा सकता था, जो न केवल दोनों भाषाओं का अच्छा जानकार हो बल्कि जो स्वयं कवि भी हो। हमारी हिन्दी के कवि अनिल जनविजय ने यह बीड़ा उठाया और देश, भाषा व काल के पार जाकर वे मन्दिलश्ताम के बीहड़ कविता-वन में जा घुसे। वहाँ से वे उस वन की मूल आत्मा को अपने पूरे हरेपन और उसकी सभी ख़ुशबुओं के साथ हिन्दी में उठा लाए हैं तथा बड़ी सहजता के साथ पाठक के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। विश्वास है, यह प्रस्तुति आपको भायेगी।

 सुधीर सक्सेना