येव्गेनी येव्तुशेंको की कविता -- रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?
रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?
तुम पूछो ज़रा उस मौन से, भैया
खेतों और मैदानों पर फैला है जो
भोज के पेड़ और चिनार से पूछो
पूछो उन सैनिकों से ज़रा फिर
भोज वृक्षों के नीचे लेटे हैं जो
सपने उनके आपको बताएँगे भैया
रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या?
उस युद्ध में जान दी सैनिकों ने
नहीं सिर्फ़ देश के लिए अपने
बल्कि इसलिए कि सारी दुनिया के लोग
शान्ति से देख सकें सपने
पत्तों और पोस्टरों की सरसराहट के नीचे
तुम सो रहे हो न्यूयार्क, सो रहे हो पेरिस
तुम्हारे सपने ही तुम्हें यह बता देंगे, भैया
रूसी लोग युद्ध चाहते हैं क्या?
हाँ लड़ना हम अच्छी तरह जानते हैं
लेकिन हम नहीं चाहते फिर से लड़ना
नहीं चाहते कि इस उदास धरती पर
फिर से सैनिको को पड़े गिरना और मरना
आप सब माओं से पूछिए ज़रा
मेरी घरवाली से ही पूछ लीजिए ज़रा
फिर समझेंगे आप यह बात, मेरे भैया
रूसी जनता युद्ध चाहती है क्या ?
मूल रूसी से अनुवाद -- अनिल जनविजय